Sunday, May 3, 2015

१३ अगस्त १९८७ से १८ अगस्त १९८७ भूषण  की भावनायेँ - पिता का देहावसान






 

       १३ तारीख को हमारी फिएट गाड़ी पूरी पेंट करके तैयार हो गई थी और सब घर के लोग अर्थात पिताजी माँ बहन बड़ा भाई और छोटा भाई तथा बड़ेभाई की औरत ( बड़ी भाभी ) अपनी बेटी के साथ गोवा निकलने तैयार हो गए ।
मैं बरामदे में सब को अलविदा कहने खड़ा रह गया  तब तक मेरे पिताजी को मैंने बाय - बाय किया और अचानक  ही मुँह फेर लिया और रोना आ गया और मन में विचार आया " बाबा जावो नका " ( " पिताजी मत जावो " ) | फिर मेरे पिताजी ने पूछा भूषण काय झालं जावू नको का  ( क्या हुआ जाये  नहीं  क्या  ) मैंने जवाब दिया जावो और यह सम्भाषण चल रहा था और मेरे ही उप्पर वाले सोने के कमरे की कांच टूट गई और मेरे मन में दर की घंटी ऐसी बजी जाने नहीं देना हैं लेकिन ये लोग बाहर घूमते नहीं थे तो पिताजी को बड़े भारी अंतकरण से बोला जावो लेकिन यह पता नहीं था की वह मेरे पिता के साथ आखरी मुलाकात होंगी | फिर वे सब लोग निकल गये और इधर मेरे दादाजी अर्थात नानासाहेब पाटील मेरी बीबी पेंट से थी एक आदमी काम करने वाला बरकुभाओ और मै ऐसे लोग ही थे पालघर के घर में पाटिल हाउस में । 

        दुसरे दिन मेरी औरत ने बोला की मै मेरी चार्टर्ड अकाउंट के ऑफिस जाकर तहकीकात करने बोरीवली में ही रहूंगी  २ - ३ दिन तक । तो  मैंने अपने नानाजी से अनुमति लेकर उसे जाने की इजाज़त दे दी । वैसे भी १४ अगस्त को पालघर में हुतात्मा दिन होता हैं । सब पालघर की दुकाने बंद होती है और मै आधा दिन ही दूकान बंद रख सकता था क्योँ की राज्य उत्पादन शुल्क डिपार्टमेंट को बिक्री बताना जरूरी था । इस दिन भी ख़याल आया की उन्हें रोक देना था । लेकिन मैंने मेरा नित्य नियम पुरा किया और अपनी नियमित पूजा पाठ करके औरत को विदा किया और पूजा के समय सब के लिए दुआ मांगी और सब लोग गए  है वे सहीसलामत लौट कर आये । 
          १५ तारीख तो ड्राई दिन था और मैं कहीं जाना नहीं चाहता ठौर न ही गया था । सिर्फ राइस मील का और खेती का हिसाब देखने गया क्योँ की सब धन्दों को देखने मुझ परजुम्मेदारी सौंपी थी । लेकिन मेरी अस्वस्थता बढ़ ती जा रही थी न ही कोई उत्साह था न कोई दिलचस्पी थी कंटाल गया था और वैसे ही श्याम को यज़्दी बाइक पर वापस पालघर लौट आया था । मेरे आदमी ने बोला उसे पेग देना था और मेरे नानाजी को भी पेग देना था और खाना देना था । पार्सल तो सद्गुरु  होटल से ही मई लेकर था । 
             १६ तारीख को मैं सबेरे उठ गया और ऐसा झटका आया की जहाँ पैर भी मेरे घर के लोग फिएट गाड़ी रहेंगे घूमते रहेंगे वहीँ पैर उन्हें रूककर तू स्टीयरिंग व्हील पर बैठ जा किसी भी हालात में इसी वक़्त निकल जा । लेकिन मैंने सोचा मेरे पास कोई गाड़ी नहीं है उन्हें रोकू कैसे और मैं अपनी दूकान खोलने चले गया और यह ख्याल गलत है सोचकर दूकान पैर बैठ गया था । मोबाइल  या कोई फ़ोन करने का इलाज मेरे पास था ही नहीं ।
              १७ तारीख सोमवार को मैं उठा और नित्य नियम और पूजा पाठ करने के मस्वान चला गया सब राइस मिल और खेती  का हिसाब लेने  चला गया और वहां से सीधा पालघर वीनस अपनी दूकान सबेरे ९ बजे खोल   दी ।  अ स्वस्थता तो थी लेकिन उस दिन शांत हो गया था और न ही कोई ख्याल आता था न कोई विचार । स्याम हो गयी और माइन दुकान आठ बजे ही बंद कर दी और अपने नानाजी को दूध और पाव खिला दिया और मेरे आदमी भावो को पेग का कोटा दे दिया और खाना खाने बोल दिया और मैं चल देने वाला था बोईसर तभी बरकुभावो ने मुझे बोला तेरे पिताजी चल बसे और मेरे अंदर दर पैदा हो गया था उसके पहले ननजी को मैंने बोला की मुझे सनरोज  होटल  के  उत्घाटन में जाने दिल नहीं मानता और मुझे तुम्हे छोड़कर जाने सही नहीं लग रहा है तो मेरे नानाजी ने जवाब दिया की बारकुभावो आहे तू  काय ही चिंता नको करू  ( तुम चिंता मत करना ) और फिर बड़े भरी अंतकरण से घर को टला लगाकर चले गया था । रास्ते में अचानक बारिश आ गया और मैं गिल्ला हो गया उर शर्ट पूरा भीग गया था । मैं वैसे भी उमेश शेट्टी  अपने दोस्त को बोल दिया था की संन  रोज होटल उत्घाटन के लिए जाना है । वैसे भी मुझे इन संखे लोगों पैर बहुत गुस्सा था और संजान वालों पैर भी क्योँ की मेरी माँ और पिताजी को बहुत हैरान करते थे और चाचा ने भी कभी सही ढंग से बात नहीं किया थी इसलिए गुस्सा आया था की फुकट में मै उत्घाटन में जा रहा हूँ । उमेश शेट्टी के पास गुरुकृपा होटल में पहुंचा और उमेश से सलाह मशौरा किया की मेरा मैंनहीं करता उत्घाटन में जाने का और मन में बहुत अस्वस्थता चल रही है तो उमेश बोला कि  मेरा भी काम मैं इधर का पूरा करता हूँ और हिसाब कर लेता हूँ । ना ही कोई इच्छा रह गयी थी दारू पीने की न ही कोई इच्छा थी मौज मस्ती करने की लेकिन उमेश बोला शर्ट नया लेकर आज तब तक मैं भी तैयार हो जाता हूँ और चित्रालय में अपना धनजी नाथू एंड कं की दूकान है वहां से लेना ।\फिर मैं शर्ट उमेश के ही होटल में बदली किया और फिर भी उमेश को बोला मैं पालघर चले जाता हूँ उसे लगा उसकी वजह से बोला तो वह बोला रुक जा मेरा काम हो गया की निकलते हैं । और फिर रात ८.३०  बजे होटल में चले गए लेकिन तब भी कोई आया है दिख नहीं रहा था और लाइट चले गयी और १० मिनट के बाद आई ।  तब तक सब लोग आना चल रहा था और फिर हम सब फैमिली मेम्ब्रान और बुलाये मेहमान टेरेस पर शराब पीना शुरू हो गया और उठघटन की रिबन भी काट दी ।\मेरा मन फिर भी अस्वस्ताता से भरी था और मैंने कब पीना चालू किया कितना पिया वो पता नहीं लेकिन इतना जर्रूर याद आया की हेमंत ने मुझे जबरदस्ती  जुगाड़ रमी खेलने दो तीन बार खेलने बिठा दिया और डबल पपलू करके मुझे जीतकर २०० रूपया थम दिया और उमेश को भी मैंने निकलने को बोला वो भी निकला फिर उमेश ने बोला की बाइक चलाएगा बररबर से या मैं चलाऊ तो मैंने बाइक स्टार्ट कर दी बैथ और बाइक पालघर की तरफ मोड लिया और चल दिए । पालघर के पास पहुंचते ही एक सायकल सवार को मेरे बाइक का हैंडल लगा और गाड़ी ८० कि मी  की स्पीड में थी ना ही मुझे रुकने की जरूरत थी न ही मेरे होश उड़े थे और मेरे मूह से गली निकल गयी और वह सायकल कहाँ गयी वह भी पता नहीं था फिर उमेश को उसके घर छोड़ा और मैं भी सोने अपने घर चला गया  और सो गया ।      
                   १८ तारिक मंगलवार  को मैं पालघर वाइन्स खोल दिया उतने में आधा पवना घंटे में धमोरिकर भाऊजी आये और बोले दूकान बंद कर और नानाजी को भी मस्वान लेकर चल तेरे पिताजी नहीं रहे ।\तो मैंने दूकान बंद किया और आसपास के लोगों को बोल दिया पिताजी का देहांत हुआ है और सब क्रिया मस्वान में होगी ।\ फिर उमेश के भी रमेश के पास पहुंचा और बोला कार किसकी मिलेगी और उसे बता दिया पिताजी का अंतकाल हो गया है । फिर मुझे सद्गुरु होटल के मालिक श्री महाबला राय की मारुती वान  तुरंत दे दिया और रमेश के दूकान आर. के. प्लाईवुड   के सामने मेरी बहन मंगला ताई  और जीजाजी मिले मेरे नानाजी  भी  साथमें थे  और मैंने सब मस्वान के घर की चाबी दे दी और रमेश शेट्टी ने भी बोला मैं ही ड्राइविंग करता हूँ और हम लोग भी मस्वान पहुँच गए कोई बात करने राजी नहीं था और हमारे आदमी किरण ने पावर टिलर लकड़ा भर कर सूर्या नदी पर ले गया ।  बहुत आया रोने के लिए लेकिन आतंरिक आत्मा  पुकार आई की भूषण तुझे ही सब कार्य पार करना है और  फिल हाल  मदद नहीं है रोने से अच्छा की तेरी हिम्मत बढ़ा ( तभी कहावत याद आई "हिम्मत ऐ मर्दा तो क्या करेगा खुदा " ) । २ से ३ घंटे बाद हरीश मिलिंद और बड़ी भाभी आ गए और मेरी औरत भी पहुँच गयी और उसने मुझे सवाल किया ये सब मेरी आने की वजह से तो नहीं हुआ तो मैंने उसे जवाब दिया जाकर किचन में देख । उसके बाद मेरे दोनों भाई मुझे कुछ भी बोल नहीं रहे थे क्या हुआ कैसे हुआ सब इंकार कर रहे थे और मुझे बोला चुप बैठ ।\फिर भी मैं मुँह छिपाकर रोे रहा था उतने में मेरे गम बूट भी कहीं गायब हो गए और फिर डेड बॉडी आने तक इंतज़ार करने सिवाय चारा नहीं था न ही माँ कोई जवाब दे पाती थी और फिर नानाजी को  हिम्मत मेरी फिसलने की बजाय बढ़ और वे शांत कुर्सी उप्पर के ओटले पर बैठे थे । करीबन लाश पिताजी की आ गयी और सब पूजा विधि शुरू हो गयी और फिर  की लाश की बिदाई अग्नि  बाद मुझे सीधा मुंबई लीन। ताई   जाने  गया और करीब शाम ४ बजे की बस पकड़कर पालघर पहुँच गया और मुंबई के लिए सर हरकिसनदस हॉस्पिटल पहुँच गया था करीब शाम ६. ३० बजे वार्ड नंबर ८ लीना ताई के पास ।\
                   वार्ड में जाने के पहले मैंने एक  सांस ली और अपने हाथ की मुठी  को दबा लिया और अंदर ताकत और हिम्मत लायी क्योँकि क्या उसे बोलना था वह बता दिया था और एक ऑपरेशन डॉ.  अस्पताल में हुआ था और जान बहुत प्रयास से बची थी रात भर बड़ी भाभी ने उसे सोने नहीं देना था एक्सीडेंट के तुरंत बाद और उसे जागते ही रखना था एक सेकंड भी सोने देना नहीं था ।\ अस्पताल में मैंने लीना तै को दर्शन दिए उसके पहले हेमंत मुझे स्मिता चाचा के घर नास्ता करने लेकर गया लेकिन कोई दाना उतर नहीं रहा था । सब मुझे पहले ही बताया गया था उन्होंने क्या बोला और वाही मैंने बोला की बाबा दुसरे वार्ड में है मैं अभी मिलकर आया और उनका हाल सही है डरने की बात ही नहीं और तेरा भी ऑपरेशन की ही तयारी करनी है वाही बात मैं करने और अस्पताल का खर्चे की पूछ ताछ करने आया हूँ और मैं इधर ही तेरे रूम पर ही हूँ ऐसा बोलकर उसे तसल्ली दी और डॉ. वेंगसरकर ने बोला ही माझी मुलगी आहे तू काळजी करू नको आणि कल जाकर मैक्सिलोफेशल सर्जन डॉ. ए. पी. चित्रे चरणी रोड स्टेशन जवळ भेंट वैसा मैं फ़ोन श्याम को लगता ही हूँ और मेरा केबिन मेस के पास ही है । कोई भी चीज़ की जरूरत पड़ेगी तो मिलना और हम लोग बातें करते रहे लीना ताई  के साथ । डॉ. वेंगसरकर नेब्काः  शायद डायरेक्टर भी आ रहे हैं और तभी तू ऑपरेशन और अस्पताल के खर्चे की बात करना तथा दवाई का खर्च तुझे करना पड़ेगा और हम कोई भी डॉ. ऑपरेशन के खर्चे लेनेवाले नहीं है । फिर वो निकल गया था और लीना ताई के साथ मैं ही रह गया था और उससे पहले हेमंत निकल गया था और मैंने उसका शुक्रियादा किया । हेमंत को अलविदा करने बाद मैं रूम से बाहर निकला और रो पड़ा ,फिर अपने आप को शांत करके मेंट्रन और डायरेक्टर की राह देख ते सामने वाले पेशेंट से लीना ताई इतिहास पंच रही थी की वह हाथ गाड़ी चलता है और पैंतीस हज़ार में अपनी किडनी देने वाला है । डॉ. लीना ताई ने उसे नहीं देने समझाया और मैंने भी बताया यह सही नहीं नहीं कर रहे हो तुम लेकिन वह बोला मेरी मजबूरी हैं ।\बहुत देर बातें चली लेकिन वह सुनने को राजी नहीं था उतने में मेट्रन और पीछे डायरेक्टर आये और दोनों ने मेरी तकलीफ हलकी कर दी और मेट्रन ने समझाया अस्पताल और रूम के रचे सब माफ़ हो जायेंगे सिर्फ दवाई के खर्चे देने है और मैंने हाथ मिलकर डायरेक्टर और मेट्रन का शुक्रियादा करते हुए अलविदा किया ततो डायरेक्टर ने बताया की द ए. पी. चित्रे  आएंगे और कल ऑपेरशन होगा । मेरी प्रार्थना ट्रैन में जाते वक़्त शुरू थी कभी बंद नहीं हुई, अस्पताल में भी शुरू था धावा ओम नमः शिवाय का, पूरा दर निकल गया था । ऑपरेशन के लिए मैंने पैसे पांच लाख दूकान के ड्रावर में रख दिए थे क्योँ की सोमवार को बहुत सारा कलेक्शन हो गया था । 
                         दुसरे दिन सबेरे डॉ. संजय भी आया और बोला भूषण ब्लड देना पड़ेगा और मुझे पूछा ब्लड ग्रुप तो मैंने बोला ओ+ और एक बोतल दे दिया तथा बिस्कुट खाए और डॉ. संजय ने पूछा वीकनेस तो नहीं लग रहा है और मैंने न बोला वैसे उसने भी एक बोतल दिया था और मैं भी दुसरे टेबल पर लेट गया था । पैथोलोजिस्ट भी बहुत नम्र थी और सुन्दर भी तो थकान भी दूर हो गयी उसके मीठे लब्जों से । रजिस्टर में एंट्री करते मैंने ध्यान रखा था क्योँ की एक बोतल का ही इस्तेमाल हुआ था और एक बची हुई बोतल मेरे ससुर के ऑपरेशन में इस्तेमाल कर लिया था कैंसर के ऑपरेशन के लिए क्योँ की मुझे तारीख याद थी । 
                         मेरे पिताजी की मौत एक्सीडेंट होने के तुरंत बाद हुई क्योँ बाय हाथ कट गया था और खून बह गया था । सफ़ेद रंग की कार से पिताजी को अस्पताल लेजाया गया और लीना ताई को भी डॉ निकम  

     

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